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Saturday 16 August 2014

Shashtaha Paathaha i;e Lesson - 6

षष्ठ: पाठ :
 
1.  आत्मन : प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् |
 
 
अर्थ :  जो मेरे लिए अच्छा नहीं , वह दूसरे के लिए भी अच्छा नहीं। 
 
भाव :  जो मैं अपने लिए लाभकारी / हितकारी नहीं समझता / समझती , मुझे वही  कार्य पराये से नहीं करना चाहिए। 
 
What is not good for me, can't be meted out by me to others. I shouldn't do, behave / talk to others what I'd not expect from them.
 
2.  हितं च मनोहारि च दुर्लभम् वच |
 
अर्थ :  उपदेश अच्छा और सुनने में मधुर, दोनों नहीं हो सकता। 
 
भाव : हितकारी उपदेश सुनने में सदा कड़वा ही होता है। दवाई हमेशा कड़वी ही होती है, परन्तु उसका असर कुछ वक़्त  बाद ही दिखाई देता है। 
 
A bitter medicine is distasteful at the time of swallowing but beneficial in the long run.
 
3.  अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम् |
 
अर्थ:  आधा भरा हुआ घट / मटका / बर्तन बहुत आवाज़ / शोर करती है। 
 
भाव :  अज्ञानी सदैव "खाली प्रवचन" करतें हैं।  उनकी शक्ति केवल उनके बोल में होती है , कार्य - क्षमता में नहीं। 
 
       Empty vessels make noise.
 
4.   विद्या ददाति विनयं |
 
अर्थ:  विद्या विनम्रता देती है। 
 
भाव :  विद्या ग्रहण करने से हममें  ज्ञान के साथ - साथ विनम्रता जैसे सद्गुण भी आतें हैं। 
 
Education gives us humility.
 
5.  सत्यमेव जयते 
 
अर्थ :  सत्य की सदैव विजय होती है। 
 
भाव :  सत्य आज नहीं तो कल सबके सामने आ जाता है।  उसे कोई झुठला नहीं सकता। 
 
Truth alone / always triumphs .
 
6.  मितं च सारं च वचो हि वाग्मिता .
 
अर्थ :  संक्षेप में अत्यधिक कह देना। 
 
भाव :  गागर मे सागर भरना।  विद्वान / पढ़े - लिखे / बुद्धिमान बहुत काम शब्दों में बहुत कुछ बोल जाते हैं। 

Intelligence / Eloquence lies in the compactness and essence of words.

7.  लोभो मूलमनार्थानाम् |

अर्थ: लालच बुरी बला है। 

भाव :  लालच ही सब बुराइयों की जड़ है।

Greed is the root cause of all evil / misery.

8.  आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपु: |

अर्थ :  आलस्य ही मनुष्य के शरीर का सबसे बड़ा शत्रु है।

भाव :  सुस्ती हमारी  सबसे बड़ी दुश्मन है।

A lazy person gains nothing out of life.

9.  अति सर्वत्र वर्जयेत् |

अर्थ :  किसी भी वस्तु  का अधिक पालन  / सेवन न करें।

भाव :  कोई भी वस्तु  अत्यधिक मात्रा में हानिकारक होती है।

Avoid excess of anything all the time. Excess has to limited anywhere.

10.  दूरत : पर्वता : रम्या :

अर्थ : कोई भी वस्तु दूर से अच्छी लगती  है .

भाव :   जब तक हमें किसी विषय - वास्तु का पूर्ण ज्ञान नहीं होता , वह बहुत अच्छी लगती है।

The grass is always greener on the other side of the fence. Mountains look great / beautiful from a distance.

11.  जल बिन्दु निपातेन क्रमश: पूर्यते घट: |

अर्थ :  बूँद - बूँद पानी। 

भाव: धीरे - धीरे  मेहनत  कर के हमें अपना जीवन का उद्देश्य पूर्ण / पूरा करना चाहिए।

Every drop makes an ocean.A pot can be filled by one drop of water.

12.  सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतामेकरूपता |

अर्थ :  संकट के समय और समृद्धि के समय, दोनों में गुणी  जन  समान भाव से रहतें हैं। 

Great people behave the same in times of prosperity as well as adversity.

13.  उद्योगिनं पुरुषसिंहमुपैति लक्ष्मी |

अर्थ :  मेहनती लोगों  को संसार के सारे धन / संपत्ति प्राप्त होतें हैं।

भाव : जो लोग  बहुत परिश्रम करतें है और समय के अनुरूप अपने को ढाल लेतें हैं , उन्हें संसार के सभी सुखः - संपत्ति प्राप्त हो जाती हैं। 

14.  न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: |

अर्थ :  सोए हुए शेर के मुंह में हिरण  अपने - आप प्रवेश नहीं करता।

भाव :  बिना परिश्रम के किसी  प्राप्त नहीं होता।

Brave and enterprising / laborious people get riches by their own efforts.

15.  दर्दुरा:  यत्र वक्तास्तत्र मौनं हि शोभनम् |

अर्थ : मेंढक अपने टर्र - टर्र की आवाज़ से अपना अहित करतें।  हैं

भाव :   जहाँ  शब्दों की आवश्यकता नहीं, वहाँ  मौन रहना ही शोभा देती है।

Silence is Golden!  The greatness of silence mitigates / reduces / decreases the effects of a harmful speech.

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