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Saturday 9 August 2014

Lesson - 5

पञ्चम : पाठ :
 
परोपकार :
 
परेषां  उपकार: परोपकार: कथ्यते . परोपकारसमं कोऽपि  अन्य धर्मं भूतले नास्ति . पुराणेषु परोपकारीणाम् महापुरुशाणाम् उदाहाराणि दृश्यन्ते .
 
**   दूसरों की  भलाई को परोपकार कहते  हैं . परोपकार के समान इस धरती  पर दूसरा  कोई धर्म नही है . पुराणों   मे कई परोपकारी महापुरुषों  के उदाहरण दिखाई देते हैं .
 
रन्तिदेव: महर्षिदधीचि :, शिवि: कर्ण: , आदय : परोपकाराय स्व्प्राणान्  अपि अत्यज्यन् . सप्तऋष्य: वाण्या एव 'मरा' जापस्य उपदेशं दत्त्वा वाल्मिकिं पापमार्गाति   न्यवारयत् .
 
**  रंतिदेव, महर्षि दधीचि, शिवि, कर्ण , आदियों ने परोपकार के मार्ग पर अपने प्राण त्याग दिए।  सप्त ऋषियों की वाणी 'मरा' जाप के उपदेश ने एक चोर को महर्षि वाल्मीकि में प्रवर्तित  कर दिया। 
 
प्रकृतिरपि परोपकारमेव शिक्षयति।  सूर्य: अनादिकालात् प्रकाशम् उष्माम दत्त्वा सर्वेभ्य: जीवनम ददाति।  नद्या: परोपकाराय वहन्ति।  वृक्षा: फलानि छाया च दत्त्वा परोपकाराम कुर्वन्ति।  मेघा: परेभ्य: वर्षन्ति।  पुष्पाणि अपि  परेभ्य: विकसति, गंधम च प्रसारयन्ति। 
 
**   प्रकृति से हमें परोपकार करने की शिक्षा मिलती है।  अनादि काल  से सूर्य देव हमें रोशनी एवं गर्मी देते हैं और सभी प्राणियों को जीवनदान  देते हैं।  नदियाँ  दूसरों  के लिए ही  बहती हैं।  पेड़ अपने फल और छाया देकर परोपकार करती हैं।  बादल दूसरों  के लिए ही बरसते हैं।  फूल भी अच्छे, बुरे, सभी में  सामान रूप से अपनी महक फैलाती हैं। 
 
परोपकार: न केवलम्  धनेन अपितु धनहीना : अपि  परोपकारम्  कर्तुम शक्यन्ते।  बुभुक्षित: भोजनं दत्त्वा , रुग्णस्य सेवाम कृत्वा, रक्तदानम्  कृत्वा, पिपासितेभ्य: जलं  पाययित्वा च वयम परेषां  उपकारम्  कर्तुम शक्नुम: . 
 
**  धनवान ही नहीं, अपितु धनहीन भी परोपकार की सेवा में भागीदार बन सकते हैं।   केवल धन से ही नहीं हम और तरीकों  से भी  दूसरों  की भलाई  कर सकते हैं।  जैसे, भूखे को खाना खिलाना, रोगियों की सेवा करना, प्यासे को पानी पिलाना इत्यादि। 

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