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Sunday 1 March 2015

Lesson - 13 Desh Prem Kaa Daam!

देशप्रेम का दाम

१.  यह कहानी ककब की है और भारत के किस राज्य की है?

इस कहानी में १९४२ के भारतीय आंदोलन का उल्लेख है।  यह उड़ीसा राज्य से सम्बंधित है।

२  नारायण बाबू बीमार बच्चे को छोड़कर क्यों ना जा सके ?

नारायण बाबू बीमार बच्चे को छोड़कर इसलिए न जा सके क्योंकि उनका ह्रदय पुत्र-स्नेह से द्रवित हो उठा था।

३ पत्नी की मृत्यु के बाद नारायण बाबू ने सनातन की परवरिश कैसे की ?

पत्नी की मृत्यु के बाद नारायण बाबू ने बड़ी कठिनाइयों से सनातन की परवरिश की।

  और बहु ने नारायण बाबू से कहाँ - कहाँ सिफारिश करने को कहा ?

नारायण बाबू के बेटे ने मंत्री से यूनियन की सिफारिश तथा बहु ने मातृ से ट्रांसफर  कैंसल करने के लिए कहा। 

दीर्घउत्तरीय प्रश्न उत्तर

१   नारायण बाबू कैसे पकड़ा गया ?

नारायण बाबू के बेटे तेज़ बुखार से तप रहा ठाट तथा सैदामिनी बेटे की हालत देखकर घबरा रही थी।  नारायण बाबू का ह्रदय पुत्र - स्नेह से पिघल गया।  पिता के वात्सल्य तथा कर्त्तव्य के आगे देशप्रेम हार गया। वे घंटेभर में वहां से चले जाने का निर्देश भूल गए. रातभर ठहरकर उन्हें तब ध्यान आया जब प्रात: पुलिस ने उनका मकान घेरकार्सिटी बजाई।

२   नारायण बाबू आधी रात में घंटे - दो घंटे के लिए ही क्यों घर आ पाते थे ?

नारायण बाबू अँगरेज़ सरकार के विरुद्ध जगजोग्रं के उद्देश्य से भूमिगत हो गए थे।  छद्मवेश में वे वेश बदलकर उड़ीसा के एक छोर  से दूसरे छोर  तक आज़ादी के लिए लोगों को जागरूक कर रहे थे।  अँगरेज़ सरकार ने उनपर हज़ार रूपये के इनाम की घोषणा की थी। इन्हीं कारणों से नारायण बाबू घंटे - दो घंटे के लिए ही घर आ पाते थे।

३  सनातन और मधुमिता नारायण बाबू से क्या अपेक्षा कर रहे थे ?

सनातन और मधुमिता नारायण बाबू से यह अपेक्षा कर रहे थे कि  वे देश को  बाद सरकार से पैसे मांगेंगे और उन पैसों को वे बांटकर सुखी जीवन जी सके, लेकिन नारायण बाबू ने सरकार से पैसे नहीं माँगे।

४  सनातन और मधुमिता के स्वभाव में आए परिवर्तन का क्या कारण था ? इससे उनके चरित्र के कौन - सा पक्ष उजागर होता है ?

जब दिल्ली से यह पात्र आया कि  केन्द्रीय सरकार ने नारायण बाबू को जीवनभर के लिए ५०० रुपए महीने का भत्ता देने का निर्णय कर लिया है तो सनातन और मधुमिता के स्वभाव में परिवर्तन आ गया।  इससे यह पता चलता है कि  आज के समय में पैसा ही सब कुछ है , रिश्ते - नातों का कोई मूल्य नाहिंन।  इससे यह भी पता चलता है कि  जो व्यक्ति अतीत के त्याग को पूंजी बनाकर वर्तमान के भोग की सामग्री नहीं जुटाता, उसे लोग असफल तथा असमर्थ ही मानते हैं।

५  आज़ादी के बाद देशवासियों का चरित्र क्यों बदल गया ? विस्तार में लिखिए।

स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतन्त्र भारत की जो तस्वीर देखि थी, स्वतंत्रता मिल जाने के बाद, बदली हुई स्तिथियों में कोई अलग ही तस्वीर नज़र आई।  महात्मा गांधी के सपनों का भारत कहीं खो गया।  इसी कारण अनेक स्वतंत्रता सेनानी भी निजी स्वार्थ के खातिर देश की सत्ता हथियाने की सोचने लगे , जिस कारण वे चुनाव भी लड़ने लगे।

६  आपकी परतंत्र भारत में अंग्रेज़ों के प्रति क्या भूमिका होती ? आप देश के लिए क्या करते ?

हम अंग्रेज़ों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और दमन का विरोध करते।  समाज के अनेक अंगों से उनके विरुद्ध जनमत तैयार करते।  असहयोग और सत्याग्रह  के द्वारा अपना विरोध प्रकट करते।  यदि परिस्थितियों की आवश्यकता होती तो क्रांति भी करते। 

 ऐसा क्यों कहा गया है कि  …। 

क.   नारायण नदास को अनुमान हो गया कि  बेटे के साथ सम्बन्ध इशी क्षण टूट गया। 

जब नारायण बाबू ने सनातन की इस बात से इंकार कर दिया कि  वे स्वतन्त्र सेनानी रह चुके श्रम मंत्री से उसकी यूनियन की सिफारिश नहीं करेंगे तो सनातन के क्रोधित होने पर उन्हें यह आभास हो गया कि  बेटे के साथ उनका सम्बन्ध टूट गया। 

ख.  अपने परिवार में नारायण दास बिलकुल नई:संग, अनावश्यक और फ़ालतू चीज़ की तरह उपेक्षित पड़े रहते। 

जब्ब नारायण बाबू ने अपनी बहु मधुमिता को स्पष्ट  कर  उसका ट्रांसफर  की मंत्री जी से सिफारिश नहीं  मधुमिता  अपनी ममता का   बंधन दूर कर लिया।  पुत्र सनातन तो पहले से ही क्रोधित हो कर सम्बन्ध तोड़ चुका था।  इस घटना के बाद वे बुल्कुल नई:संग, फ़ालतू चीज़ के जैसे पड़े थे। 

ग.  बहू की बात सुनकर नारायण दास की छाती में हुक - सी उठी।  तन-मन दर्द से भर गया। 

जब नारायण बाबू ने निर्लिप्त-भाव से मृत्यु से निडर होकर वरण करने की बात कही तो मधुमिता द्वारा यह बताने पर की सरकार ने उन्हें ५०० रुपए महीना भत्ता देना मंज़ूर किया है, उनके हृदय में हुक - सी उठी। 

जीवन मूल्य परक प्रश्न -उत्तर 

प्र।   हम सत्ता और शक्ति के पीछे क्यों दौड़ते रहते हैं ?

उ  देशप्रेम नई:स्वार्थ होता है।  सत्ता और शक्ति के पीछे दौड़नेवाले स्वार्थी होते हैं. उनका देशप्रेम दिखावा मात्र होता है।  वह हमें प्रभावित करने के किए होता है ताकि हम सत्ता तक पहुँचने में उनकी मदद करें।  इसलिए वे सत्ता में पहुँचते ही केवल अपने और अपनों के हित -साधन में जुट जाते हैं। 

वे हम जैसे को साक्षात तो दूर की बात, सपने में भी देखना पसंद नहीं करते।  दूसरी ओर  जो सच्चे देशप्रेमी होते हैं , उन्हें अपने या अपनों की कोई फ़िक्र नहीं होती। 

सच तो यह है कि  हम सभी ही उनके अपने होते हैं. वे तो सत्ता पाना ही नहीं चाहते।  इन दिनों हमारे बीच इसका जीता-जागता उदाहरण हैं - अन्ना हज़ारे। 

बस. ख़त्म। 

बाकी बाद में। 

सबकी दोस्त,

लक्ष्मी।  :-)))

तरुवर फल नहीं खात  है , सर्वर पियहि न पान। 
कहीं  रहीम परकाज हित , संपत्ति सँचहि सुजान। 

 

16 comments:

  1. Plz tell that what was the job of narayan babu?

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    1. नारायण बाबू स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने से पूर्व, दारोगा की नौकरी करते थे।
      https://youtu.be/Kq6uEB_bJCY

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  2. No. 8 आशय स्पष्ट कीजिए

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    1. मेरा ख्याल है कि आप अंतिम प्रश्न का स्पष्टीकरण चाहते हैं।

      मानव अपने आप को सबसे ऊपर रखना चाहता है। धन, सत्ता, ताकत आदि से दूसरों पर राज करना चाहता है। उसे यह सब राजनीति के द्वारा एक साथ साझा होते दिखाई देता है। अपनी चिकनी- चुपड़ी बातों से वह लक्ष्य तक पहुंच ही जाता है।

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  3. Pls send of chapter 14 Jahanara . I want to submit

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    1. Hi.

      I wrote this blog in 2014. My I covered the chapters in my son's 8th grade Hindi book. I do not remember a chapter on Jahanara. Kindly refer to internet, more information is available on YouTube. If your syllabus is NCERT, CBSE, a website is dedicated to it.

      Thanks and regards,
      Lakshmi.

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  4. कया अप नारायन बाबू एक सच्चे देशभेक्त थे कैसे इस क्वेश्चन का आंसर बता सकते है

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    1. मैंने कुछ आठ साल पहले यह ब्लॉग अपने बेटे और उसके सहपाठियों के लिए लिखी थी।अब मेरे पास वह किताब नहीं है। किन्तु यह पाठ अब यूं ट्यूब पर उपलब्ध है। 🙏

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