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Thursday 27 November 2014

Lesson - 10 Explained!

अभ्यास: परम्: गुरु:

पुरा: एक: बालक: आसीत् .  तस्य नाम बोपदेव: आसीत् . स: मन्दमति: छात्र: आसीत्. स: यत् पठति  सं तत् विस्मरति स्म . सर्वे तस्य सहपाथिन: तस्य उफासं कुर्वन्ति स्म .

*** किसी पुराने समय में एक बालक था।  उसका नाम बोपदेव था।  वह काम बुद्धि वाला विद्यार्थी थ. वह जो भी पढता वह सब भूल जाता था।  उसके सारे सहपाठी उसका उपहास / मज़ाक उड़ाया करते थे। 

एकदा तस्य गुरु: तस्योपरि कुपित: अभवत् तं विद्यालयात् च बहि: अकरोत् . आत्मसम्मानेन् वञ्चित: भूत्वा स: अचिन्तयत् - "अहं नूनम् मूर्ख: अस्मि, मम भाग्ये विद्या नास्ति .

***  एक बार उसके गुरु ने बहुत क्रोधित होकर उसे विद्यालय से बाहर निकाल दिया . आत्म्सम्मान्  से वंचित होने पर (ठेस लगने पर) उसने सोचा , " मैं  अवश्य ही मूर्ख हूँ , मेरे भाग्य में विद्या नहीं है।  "

दुखित: सन्  बोपदेव इतस्तत: भ्रमणम् अकरोत् . एकदा मार्गे गच्छन्  बोपदेव: एकं कूपम् अपश्यत् . तत्र काश्चन नार्य: जलेन घटान  पूरयन्ति स्म .

*** दुखी होकर बोपदेव इधर - उधर घूमने लगा।  एक बार रास्ते में जाते हुए उसने एक कुँआ  देखा।  वहाँ  पर कुछ औरतें अपने घड़ों में पानी भर रहीं थीं। 

स: तत्र स्थित भूत्वा आश्चर्येण् अपश्यत् - यस्यां शिलायां स्त्रिय ; घटं स्थापयन्ति स्म: तत्र एक: गर्त: अभवत् . एतत् दृष्ट्वा बोपदेव; अचिन्तयत् - यदि घटेन  शिलाखण्डे  गर्त; भवति तर्हि पुन: पुन: अभ्यासेन मम बुद्धि अपि तीव्रा भविष्यति .

*** वहाँ  रूककर वह आश्चर्यपूर्वक देखने लगा।  जहाँ  पर औरतों ने घड़े रखे थे, वहा एक गड्ढा उभर आया था।  यह देखकर बोपदेव सोचने लगा , यदि घड़ों से पत्थर पर गड्ढा बन सकता है, तो मेरे बार - बार अभ्यास / प्रयत्न करने पर मेरी बुद्धि भी तीव्र हो सकती है। 

एवं चिन्तयित्वा बोपदेवा: पुन: विद्याप्राप्त्यै संकल्पम् अकरोत् . दत्तचित: भूत्वा स: परिश्रमेण अपठत . एवं कालान्तरे स; सहपाथिनाम् आचार्याणाम् च स्नेहं प्राप्तं .

***  ऐसा सोचकर बोपदेव ने फिर से पढ़ने का निश्चय किया. एकमन होकर उसने बहुत परिश्रम के साथ पढ़ाई की।  ऐसे ही कुछ समय बाद उसके सहपाठी और गुरु का प्यार उसे मिला। 

एष: (respectable form) संस्कृत व्याकरणस्य महान् पण्डित: वरदराज: इति अभिधानेन प्रसिद्दः अभवत् . स: लघुसिद्धान्त कौमुदिनामकं, संस्कृत - व्याकरणस्य पुस्तकं अरचयत् .

***  यह संस्कृत व्याकरण (grammar) के महान पंडित, वरदराज के नाम से जाने जाते हैं।  इन्होनें  लघुसिद्धान्त कौमुदी नामक संस्कृत व्याकरण का पुस्तक रचा (की रचना की).


सबकी दोस्त,

लक्ष्मी आर. श्रीनिवासन।  :-)))
 

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