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Saturday, 14 February 2015

Lesson - 18 Meanings!

गीताया: श्लोका:

1.  यो मां पष्यति सर्वत्र, सर्वं च मयि पश्यति .
     तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति .

One who sees me in all, and sees all in me, to him I am not lost, and he is not lost to me.

मूल अर्थ: मुझे हर जगह देखता है, हर प्राणी में मेरे दर्शन करता है, यह मान कर चलता है कि  मानव सेवा ही नारायण सेवा है, मैं  वह मुझसे कभी अलग नहीं होता।

भावार्थ : जीवन का लक्ष्य यही है कि हम दूसरों के लिए जियें , इसलिए यही सही होगा कि  हम अपने मन को शुद्ध को रखकर जितना हो सके भेदभाव भुलाकर, ईर्ष्या आदि त्याग कर दूसरों की मदद करें। यह तभी संभव है जब हम हर प्राणी, छोटा या बड़ा हरेक में ईश्वर को देखें।  ऐसा जीव मृत्यु के बाद भी जीवित रहता है।

2.    ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् .
       मम्  वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश: .

In whichever way submits to me in total surrender, I would reward them accordingly.  In whatever way / form a person submits to me I'll be available to them in that form. The ways of devotion may be different, but ultimately, everyone comes unto Me.


जो कोई तन - मन - धन से मेरी शरण में आए, मैं  उसका फल उसे अवश्य दूँगा।

भावार्थ:  चाहे मनुष्य मुझे किसी भी रूप में अर्थात सखा, माता, पिता, भाई, बहन, बंधु , अपना कार्य आदि में देखे, मैं  उसे उसका फल अवश्य दूँगा  . मेरी शरण में आने के की मार्ग हैं , परन्तु अंत में सब मुझे पा ही लेते हैं।

3 .  असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् .
      अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण् च गृह्याते .

Without any doubt, the human mind is fickle - natured, ever-changing and distracted, but with regular practice and detachment, it could be definitely controlled.

निःसंदेह , हे वीर, कुंती - पुत्र ,मन बहुत ही चंचल है , किन्तु अभ्यास (मेहनत ) एवं वैराग्य मनोभाव से इसे वश में किया जा सकता है। 

हमारा मन बहुत ही चंचल होता है, यह हमें हर इच्छा की ओर  आकर्षित करता है, और हम भी इसकी ओर  खिंचे  चले जाते हैं , किन्तु कठिन अभ्यास से हम इस चंचल मन को भी अपने वश  में कर सकते हैं।

4 . यदा - यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत .
     अभ्युत्थानमधर्मस्य  तदात्मानं स्रुजाम्यहम् .

O Arjuna! Whenever evils and unrighteousness rear their ugly head, I come down to help all those who have complete faith in me and surrendered to me .

हे भारत (अर्जुन)! जब - जब धर्म को क्षति पहुँचती है, और अधर्म की वृद्धि होती है, तब - तब मैं इस संसार में साकार रूप में प्रकट होता हूँ   .

कलयुग में हर प्राणी चाहे वह सज्जन ही क्यों न हो, उसे हर कदम पर अधर्म का सामना करना पड़ता है।  धर्म धीरे - धीरे मिटता जा रहा है।  चारों तरफ़  अधर्म - ही - अधर्म है। ऐसे में भगवान श्री  कृष्ण कहते हैं  कि  वह हमारी सहायता के लिए किसी - न - किसी रूप में प्रकट होते हैं। 

5 .  परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्
      धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे - युगे .

To deliver / save good people from evil and to uproot the cause of evil I come down in different forms / avataars to reinstate Dharma / righteousness.

सज्जनों  को अधर्म से बचाने के लिए पापों / पापियों का विनाश करने के लिए और धर्म को पुन: स्थापना करने के लिए मैं इस धरती  पर कई  अवतार लेता हूँ। 

हर युग में धर्म और अधर्म, सत्य और असत्य, अच्छे और बुरे के बीच लड़ाई चलती रही है।  जब अधर्मी धार्मिक भक्तो को पीड़ित करते हैं तब भगवान कोई अवतार लेकर सज्जनों  को दुर्जनों  से बचाकर , पापियों का विनाश करने और धर्म का फिर से स्थापना करते हैं। 

सबकी दोस्त,

लक्ष्मी आर. श्रीनिवासन।  :-)))

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