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Tuesday, 3 February 2015

Lesson - 14 Vidya Mahima!

विद्या महिमा 

1.   अपूर्व कॊपि कॊशॊयम् विद्यते तव भरति .
      व्ययतो वृद्धिमयाति क्षयमायाति सञ्चयात् .

मूल अर्थ :  हे ! सरस्वती माता , यह  विद्या बडी ही अनोखी वस्तु है. जितना हम उसे व्यय अर्थात्  खर्च करे, वः उत्नी ही बढ़ती है।  किन्तु अगर इसे अपने तक सीमित  रखें  तो , वह नष्ट हो जाती है। 

भावार्थ:  इस संसार की भलाई इसी में हैं  कि  हम अपनी विद्या दूसरों के साथ बाँटें, जितना कोई अपनी विद्या बांटेगा, वह उसके मस्तिष्क में उतना ही पत्थर की लकीर बनकर शाश्वत रहेगा. सदियों तक रहेगा वरना मिट जाएगा। 

दोहा :

सरसुती के भण्डार की, बड़ी अपूरब बात।

ज्यों खर्चे त्यों त्यों बढे , बिन खर्चे मिट जाए।

यह वृन्द का दोहा भी हमें यही सिखाता है।


O Goddess Saraswati! You treasury called knowledge is indeed mysterious. As one spends more of it the more one learns, whilst when not shared, loses it forever!

Whatever one is good at or has learnt well, must be shared not only for the welfare and upliftment of others but also to for one's own good. This is can be elaborated as when one shares one's knowledge about a subject it strengthens the neural pathway that contains that specific information and also allows one to learn in turn. If this knowledge is kept to oneself and not shared, it gets erased not only from one's own mind but also from this world forever.

2.  विद्वत्वम् च नृपत्वं च नैव तुल्यं कदाचन .

     स्वदेशे पूज्यते राजा , विद्वान् सर्वत्र पूज्यते .

मूल अर्थ :  विद्वान् व्यक्ति और धनी व्यक्ति या राजा की तुलना नही . अपने राज्य मे राजा पूजा जाता है वरन विद्वान् की हर स्थान मे पूजा होती है .

भावार्थ :   जो धनी व्यक्ति है , जिसके पास धन का भण्डार है उसका आदर केवल उसके अपने देश, राज्य या क्षेत्र में होता है, किन्तु विद्यागुन से संपन्न विद्वान का संसार में हर स्थान में आदर होता है।  जब तक धन है, आदर है किन्तु विद्या ऐसी सम्पत्ति है जो मृत्यु तक रहती है।

Though there is no comparison between a rich, influential person and a learned man. A king is worshipped in his kingdom, while a learned man is worshipped everywhere!

A rich person is worshipped / sought after only in his area, kingdom or reach of power, or till the wealth and the influence lasts! Whereas, a learned person is worshipped forever. Not just in his area of influence but also outside of it! His fame lasts till eternity!

3.  रूपयौवनसंपन्ना: विशालकुलसम्भवा :.
     विद्याहीना: न शोभन्ते निर्गन्धा इव किशुका :

मूल अर्थ :   रूप और यौवन से संपन्न व्यक्ति, जो धनि परिवार में पैदा हुआ हो, व अगर विद्या संपत्ति से हीन  हो , तो वह  किन्शुक यानी पलाश वृक्ष के उन सुन्दर पुष्पों के समान  है, जिसमे सुंदरता तो है किन्तु सुगंध नहीं।

भावार्थ :  जिस तरह पुष्प का सुन्दर होना ही नहीं वरन उसका सुगन्धित होना भी आवश्यक है , उसी तरह बड़े, धनी , कुलीन परिवार में केवल पैदा होने से कोई बड़ा नहीं बन जाता, उसमे विद्या नामक गन होना भी उतना ही आवश्यक है।

No matter how rich, beautiful / handsome or born into a family of influence or intelligence, if one remains uneducated, he is equivalent to the flowers of the Kinshua / Palasha tree, which though beautiful to look at, have no smell!

Our family heritage and lineage is of no value, if we are not educated properly, not only in the literal sense that is, number of degrees accumulated, but educated in the real sense.

4.  न चोरहार्यं न राजहार्यं , न भ्रातृभाज्यं न च भारकारि ,
     व्यये कृते वर्धते एव नित्यं, विद्याधनं सर्व धन प्रधानं .

मूल अर्थ :  न चोर चुरा सकता है, न राजा आदेश द्वारा चीन सकता है , भाइयों में बांटा नहीं जा सकता, न ही यह भारी है , जितना खर्चे उतना ही बढे यह विद्या धन, जो धनों में सर्वप्रधान है।

भावार्थ :    केवल विद्या धन ही ऐसी संपत्ति है, जो हमारे साथ सदैव रहेगी।  यही एक ऐसी संपत्ति है जिसे कोई बल द्वारा हमसे  छीन  नहीं सकता। . जितना हम इसे खर्चेंगे यह उतना ही बढ़ेगा। 


Thieves cannot steal, neither can the King order it out of us, nor cannot it be divided among one's brothers / siblings and it is not heavy either. The more you spend, the more you gain, such is the property of the wealth called Education!

Education is the only wealth that remains with us forever. We can be robbed of any other possession, but never of this precious wealth. The more you spend, the more you gain.

5.  विद्या ददाति विनयं, विनयात् ददाति पात्रतां .
     पात्रत्वाद धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततस्सुखम् .

मूल अर्थ :  विद्या प्राप्ति से विनम्रता मिलती है, विनम्रता से अच्छे गुण , इन गुणों से धन की प्राप्ति होती है जिसके द्वारा संसार के सभी सुख मिलते हैं। 

भावार्थ :  विद्या अर्थात ज्ञान से हम में विनम्रता अर्थात दूसरों को हैं न समझने की और उनका आदर करने की भावना उत्पन्न होती है , विनम्रता से बाकी  सद्गुणों का अपने - आप विकास होता है , इससे धन की प्राप्ति होती है और अंत में व्यक्ति संसार का सबसे सुखी व्यक्ति बन जाता है। 

By education one becomes humble, humility paves way to a good and strong character, through character one earns wealth and finally this wealth gives peace and happiness.

By vale - based education one learns to be humble and be patient of others and starts respecting others. This humility helps in character - building. When one has a beautiful character, one works hard, through which wealth is amassed, and when wealth is earned through honest means it gives peace of mind and finally happiness.

Everyone's Friend,

Seetha Lakshmi. :-)))

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