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Saturday, 22 August 2015

Rakshabandhan रक्षाबंधन

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नहीं चाहिए मुझको हिस्सा माँ-बाबा की दौलत में
चाहे वो कुछ भी लिख जाएँ भैया मेरे ! वसीयत में

नहीं चाहिए मुनझको झुमका चूड़ी पायल और कंगन
नहीं चाहिए अपनेपन की कीमत पर बेगानापन

मुझको नश्वर चीज़ों की दिल से कोई दरकार नहीं
संबंधों की कीमत पर कोई सुविधा स्वीकार नहीं

माँ के सारे गहने-कपड़े तुम भाभी को दे देना
बाबूजी का जो कुछ है सब ख़ुशी ख़ुशी तुम ले लेना

चाहे पूरे वर्ष कोई भी चिट्ठी-पत्री मत लिखना
मेरे स्नेह-निमंत्रण का भी चाहे मोल नहीं करना

नहीं भेजना तोहफे मुझको चाहे तीज-त्योहारों पर
पर थोडा-सा हक दे देना बाबुल के गलियारों पर

रूपया पैसा कुछ ना चाहूँ..बोले मेरी राखी है
आशीर्वाद मिले मैके से मुझको इतना काफी है

तोड़े से भी ना टूटे जो ये ऐसा मन -बंधन है
इस बंधन को सारी दुनिया कहती रक्षाबंधन है

तुम भी इस कच्चे धागे का मान ज़रा-सा रख लेना
कम से कम राखी के दिन बहना का रस्ता तक लेना।

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