पृथ्वी पर तीन रत्न उपलब्ध हैं - जल, अनाज और मधुर वचन, किन्तु मानव जाति पत्थर यानि बहुमूल्य रत्नों के पीछे दौड़ता है।
भावार्थ : मनुष्य जीवन में बहुत अनमोल जल, अन्न और मधुर वचन या पुस्तक यानि अच्छे सीख देने वाले शास्त्र हैं, किन्तु मनुष्य धन जुटाने की होड़ में है।
जिस व्यक्ति को स्वबुद्धि न हो उसका शास्त्र से क्या लेना - देना ? जिस तरह एक नेत्रहीन व्यक्ति के हाथों में दर्पण हो।
भावार्थ : मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है, स्वयं के बारे में ज्ञान, इसका अर्थ यह है कि जिसने स्वयं की कमज़ोरियों पर विजय प्राप्त नहीं किया उसका शास्त्र पठन से या विद्या प्राप्त करने से कोई लाभ नहीं।
फलों से लड़े पेड़ झुकते है, सर्वगुण संपन्न व्यक्ति आदर में झुकते हैं , किन्तु सूखे हुए पेड़ और मूढ़ व्यक्ति कभी नहीं झुकते। ,
भावार्थ : जिस तरह मीठे पके हुए फलों से लड़े वृक्ष अपने भार के कारण झुकते है, उसी तरह सभी सत गुणों से सुसज्जित व्यक्ति , जिसमे अहम की भावना न हो वह भी समयानुसार झुक कर कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करता है. परन्तु सूखे हुए वृक्ष जिसमे अब कभी फल नहीं लग सकते उनमे झुकने की संभावना कदापि नहीं, उसी तरह मुर्ख व्यक्ति यानि कि व्यक्ति जिसमे अहंकार हो वह कभी किसी के सामने नहीं झुकता।
विद्वानों का समय काव्य, शास्त्र आदि के पठन में जाता है, किन्तु मुर्ख, अज्ञानियों का समय झगड़ों में, दुष्कर्मों में और निद्रा में व्यतीत होता है।
भावार्थ: सज्जन व्यक्ति अपना समय सत्कर्मों में और दुर्जन दुष्कर्मों में बिताते हैं।
वाणी की मधुरता प्रयत्न के साथ - साथ बढ़ती है , जिस प्रकार धन के दान से जीवन सफल होता है।
भावार्थ: कोई भी कार्य प्रयत्न के द्वारा सफल होती है उस प्रकार धन दान करने से अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। धन जुटाना कोई बड़ी बात नहीं , उसे दान करना भी आना चाहिए।
सबकी दोस्त ,
लक्ष्मी आर। श्रीनिवासन। :)))
भावार्थ : मनुष्य जीवन में बहुत अनमोल जल, अन्न और मधुर वचन या पुस्तक यानि अच्छे सीख देने वाले शास्त्र हैं, किन्तु मनुष्य धन जुटाने की होड़ में है।
जिस व्यक्ति को स्वबुद्धि न हो उसका शास्त्र से क्या लेना - देना ? जिस तरह एक नेत्रहीन व्यक्ति के हाथों में दर्पण हो।
भावार्थ : मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है, स्वयं के बारे में ज्ञान, इसका अर्थ यह है कि जिसने स्वयं की कमज़ोरियों पर विजय प्राप्त नहीं किया उसका शास्त्र पठन से या विद्या प्राप्त करने से कोई लाभ नहीं।
फलों से लड़े पेड़ झुकते है, सर्वगुण संपन्न व्यक्ति आदर में झुकते हैं , किन्तु सूखे हुए पेड़ और मूढ़ व्यक्ति कभी नहीं झुकते। ,
भावार्थ : जिस तरह मीठे पके हुए फलों से लड़े वृक्ष अपने भार के कारण झुकते है, उसी तरह सभी सत गुणों से सुसज्जित व्यक्ति , जिसमे अहम की भावना न हो वह भी समयानुसार झुक कर कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करता है. परन्तु सूखे हुए वृक्ष जिसमे अब कभी फल नहीं लग सकते उनमे झुकने की संभावना कदापि नहीं, उसी तरह मुर्ख व्यक्ति यानि कि व्यक्ति जिसमे अहंकार हो वह कभी किसी के सामने नहीं झुकता।
विद्वानों का समय काव्य, शास्त्र आदि के पठन में जाता है, किन्तु मुर्ख, अज्ञानियों का समय झगड़ों में, दुष्कर्मों में और निद्रा में व्यतीत होता है।
भावार्थ: सज्जन व्यक्ति अपना समय सत्कर्मों में और दुर्जन दुष्कर्मों में बिताते हैं।
वाणी की मधुरता प्रयत्न के साथ - साथ बढ़ती है , जिस प्रकार धन के दान से जीवन सफल होता है।
भावार्थ: कोई भी कार्य प्रयत्न के द्वारा सफल होती है उस प्रकार धन दान करने से अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है। धन जुटाना कोई बड़ी बात नहीं , उसे दान करना भी आना चाहिए।
सबकी दोस्त ,
लक्ष्मी आर। श्रीनिवासन। :)))
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